Lockdown – आत्ममंथन 6
लॉकडाउन को आरंभ हुए 45 दिन हो गये हैं। कहीं दिमाग के कोने में एक बात उभर कर सामने आ रही है कि क्या हम पहले की तरह जिंदगी जी पायेंगे? क्या इस तरह शाम को कहीं घूमने निकल सकेंगे, मुक्त होकर हवा की सरगोशियों को फिर जी पायेंगे। शायद… हां… नहीं भी।
शायद ज़िंदगी पहले से बेहतर हो जाये। उन लमहों में हम अपने आप को तलाशें कि हम कहां हैं? अपने आप से ही कितने दूर हो गये थे। हम सब जो न कर सके, कुदरत ने कर दिखाया है। बहुत बड़ा रहस्य छुपा है इस महामारी के पीछे। एक सकारात्मक सोच लिये।
डर… असीमित डर, कभी-कभी हमारी चेतना को हिला कर रख देता है। आज मेरे एक परिचित का फोन आया। वे इतने परेशान थे और तनाव में भी। क्योंकि उन्हें सपना आया था कि उनके घर में सबको वायरस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। धार्मिक प्रवृत्ति होने की वजह से उन्हें कितने उदाहरण देकर समझाया कि जिंदगी और मौत हमारे हाथ में नहीं है, सब कुछ निश्चित है। वे थोड़ा सहज हुए लेकिन मेरे अंदर भी एक अदृश्य डर किसी मन के कोने से आकर मुझसे सवाल कर रहा था।
यह स्वाभाविक है हम सबका डरना… आशंका में रहना। हम एक-दूसरे से संवाद कर भावनाओं को साझा करके राहत महसूस करते हैं और इस डर से निजात पाने का यह बहुत ही सरल तरीका भी कह सकते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सब कुछ बंद है। आखिर क्यों? क्या भगवान भी अपने दरवाजे पर इनसान को नहीं आने देना चाहता। क्यों? क्या ये कुदरत और एक शक्ति—आप चाहे भगवान कहो, अल्लाह कहो या गुरुजी या जीसस कहो, सब इनसान से रूठ गये हैं? क्या इनसान ने सारी शक्तियों को अपने हाथ में ले लिया था या कोशिश की थी। अब एक असीमित शक्ति ने दिखा दिया है कि वे बहुत तुच्छ हैं, शक्तिहीन हैं। इनसान ने सारी प्रकृति को कंक्रीट जंगल में बदल दिया था। आज ऊंची-ऊंची मीनारों में सब कोई कैद होकर रह गये हैं। हमने सबने जो दिया है वह ही हमें वापस मिल रहा है। अब हमें सबक लेना चाहिए और अपने आप को बदलना चाहिए। प्रकृति की सुंदरता को बनाये रखना चाहिए।
यह बात बहुत गहरी है कि हम जब भी दुखी होते हैं, परेशान होते हैं तो आपस में ज्यादा जुड़ जाते हैं। दु:ख एक पुल का काम करता है। जब देश के प्रधानमंत्री ने सबको दीप जलाने का आह्वान किया था तो हम सभी अपने घरों के बाहर दीप जलाने लगे। वह मात्र दीप जलाना ही नहीं था, एक आशा थी, एक विश्वास था कि एक दिन इस घोर अंधेरे (महामारी) से बाहर निकलेंगे। एक नयी सुबह होगी। सबको अंतस से महसूस हो रहा था हम सब इस आपदा में एकसाथ हैं। सबका दुख, परेशानियां बंटी हुई हैं लेकिन यही अहसास हमें तनाव से थोड़ी राहत महसूस करवा रहा था।
हम सबको इस महामारी में अभी कुछ दिनों तक ऐसे ही रहना है। इसलिए कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए जो हमें तनाव से दूर रख सके। एक-दूसरे से विचार साझा करने चाहिए। हमें आपस में संवाद करना चाहिए। अपने अहम् की लक्ष्मणरेखा से बाहर आना चाहिए। निश्छलता में ज़िंदगी हंसती है…
मासूमियता… निश्छलता… मुस्कुराहटें