Lockdown – आत्ममंथन 11
कभी-कभी मुश्किल चीजों में बहुत आसान उत्तर छिपे होते हैं जो हमारे लिये महत्वपूर्ण और जरूरी भी होते हैं। इसी तरह शायद यह महामारी भी है। कितनी परेशानियां इसके कारण हम सब झेल रहे हैं लेकिन सकारात्मकता से सोचें तो कितने ही ऐसे कार्य हैं जो हमने इस समय के दौरान किये हैं, सीखे हैं। आत्मनिर्भरता, संयम को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण रास्ता बना चुके हैं।
अब से पहले तक हम अपनी दिनचर्या कैसे बिताते थे या हम कौन से ब्र्रांड की कौन-सी चीजों का उपयोग करते थे, ये अब सचमुच में बेमानी हो गये हैं। अब मात्र अपनी जरूरतों को पूरा करना ही समय की मांग बन गया है। जब हम इन सभी मनपसंद चीजों को पूरा नहीं कर पाते तो एक तनाव का अनुभव करते हैं। लेकिन हमें अपने मन को नियंत्रित करना होगा।मन कितना जटिल होता है। इसमें कितने अनगढ़ और कठिन रास्ते होते हैं। जहां हमारा शरीर मन से कभी जबरदस्ती चलता रहता है, कितने ही मीलों-मील हम जिंदगीभर चलते रहते हैं। ये यात्रा हमारी अकेले की ही होती है। बस, मन इसका प्रमाण होता है और ये रास्ते कभी मन इन पर दौड़ता है। कभी धीमे-धीमे चलता है और इन्हीं रास्तों पर चलते हुए कई मरतबा बहुत अकेले हो जाते हैं, बहुत तनहा। तब हमें जरूरत होती है किसी सहारे की, जो अनसुलझे प्रश्नों को सुलझाये, अपनी राय दे सके क्योंकि हम इन्हीं प्रश्नों में उलझते हैं और बहुत अकेले होकर तनाव में बुरी तरह घिर जाते हैं।
आज मेरे एक स्टूडेंट का फोन आया, आज की स्थिति पर उससे लंबी बातचीत हुई। मुझे बहुत हैरत हुई उसकी बात सुनकर जो बच्चे स्कूल या कॉलेज जा रहे हैं उनके मन में क्या चल रहा है और वे किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। सचमुच, हम बच्चों के कोमल और बदलते मन को कहां समझ पाते हैं। उसका यह कहना कि अगर हम सब कुछ अपने अनुभव घर में साझा करते हैं, तो सबसे पहले सब लोग सुन लेते हैं और भावनात्मक रूप से हमारे ऊपर कितना दबाव पड़ जाता है।
लेकिन स्थिति को समझने के बजाय वह हमेशा कहते हैं कि वे ही गलत हैं, सारी सुख-सुविधाओं के होते हुए आपने किसी के साथ अपने अनुभव साझा क्यों कर लिये। कितनी उलझन वाली स्थिति है। अगर आप सब कुछ कहते हैं तो कोई समझने को तैयार नहीं और नहीं कहते तो मन तनाव में रहता है। आप घर और बाहर भावनात्मक रूप से टूटते हैं। उसकी सारी बातें सुनकर मुझे अपना मनोविज्ञान का ज्ञान अधूरा लगा। सच्चे मन की पक्की बातें, सचमुच बिल्कुल सही लगी। बहुत कम होता है कि हम अपने बच्चों के साथ मित्रता वाला व्यवहार करते हैं या उनकी इस उम्र की कल्पना के पंखों की उड़ान को समझते हैं। ज्यादातर तो हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए उनके पंखों पर उड़ते हैं। भूल जाते हैं कि एक समूचा व्यक्तित्व है वे। उनकी अपनी उड़ान है, अपने पंख हैं, अपने सपने हैं, अपना आकाश है और वे इस आकाश में अकेले उड़ना चाहते हैं। आप उनका संबल बनिये, रुकावट नहीं।
शायद एक सभ्य और आत्मनिर्भर समाज की नींव भी यही है। हमें अपने सपनों को अपने तक सीमित रखना चाहिए बच्चों के कोमल मन पर अपना बोझ नहीं डालना चाहिए। क्योंकि भावनात्मक रूप से टूटना और परिवार से न कह पाना और खुद ही उलझना, कभी-कभी बहुत दुखदाई परिणाम हमारे सामने आते हैं, आत्महत्या के रूप में। असफलताओं को भी एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में अपनाना चाहिए और यही बच्चों को भी सिखाना चाहिए कि असफलता एक अस्थाई प्रक्रिया है। सफलता से पहले का एक पायदान। अगर हम उनकी असफलता में उनके साथ होंगे तो वे इस कठिन दौर से भी गुजर जायेंगे। जरूरत है उनके मन को समझने की, उनसे जुड़ने की क्योंकि मन की गुफाओं में कितने रास्ते हैं, मन उन पर कब और कितना क्यों चलता है ये कभी-कभी उसे भी पता नहीं चलता। जरूरत है एक संवेदनशील और परिपक्व सहारे की जो बिना किसी शर्त के उसके साथ रह सके। उसे समझ सके एक उज्ज्वल और सक्षम भविष्य के लिए…!
संवेदनशील… सक्षम… भावनात्मक…
Alka
बच्चों के मन को समझना बहुत ज़रूरी है । पर बहुत कम माँ बाप ऐसा कर पाते हैं । councelling के दौरान यह बात अक्सर सामने आती है । बहुत बार parentsके लिए भी session लगाने पड़ते हैं