Lockdown – आत्ममंथन 12
हमारा सकारात्मक होना क्यों जरूरी है। हम कई बार इस शब्द को बस मात्र सुनते हैं लेकिन गहरे तक इतना ज्यादा नहीं सोच पाते। ये शब्द मात्र शब्द नहीं एक अपूर्व भंडार है। हमारी सोच का एक काफिला है और जब यह हमारी सोच में शामिल हो जाता है, सुखद परिणाम हमारे सामने आते हैं। इस शब्द का हमारी जिंदगी में बुना जाना बहुत आवश्यक है। हम कितनी प्रकार की कमियों से जूझ पाते हैं। जब हम सकारात्मक होते हैं।
अभी इस महामारी में हमारी सकारात्मकता ही काम आई है। हम कितनी ही कमियों से गुजरे हैं और हैरानी की बात है कि कितनी आवश्यक, अनावश्यक चीजों के बिना हम रह रहे हैं। जैसे कि हम बाजार भी बहुत ज्यादा नहीं जाते। महंगे ब्रांडेड कपड़े नहीं खरीद रहे। घर से बाहर रेस्तरां में खाना नहीं खा रहे। परंतु फिर भी हमारी जिंदगी अच्छे से चल रही है। यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि बहुत सारी चीजें तो हमें चाहिए ही नहीं होती। क्यों इनका भंडारण करते हैं, क्यों इतना संग्रह…! क्या हम हमेशा के लिए अपनी जरूरतों को कम नहीं कर सकते। एक प्रश्न दिमाग में आ रहा है जब जीवन साधारण चीजों से अच्छी प्रकार से चल सकता है तो फिर यह भागदौड़ क्यों?
क्या यही सब समझने-समझाने के लिए कुदरत का यह वक्त हमें मिला है। बहुत कुछ हम खो भी रहे हैं। लेकिन फिर भी एक विश्वास है, जीने का और यही सकारात्मकता है।
सब कुछ पहले जैसा नहीं चल रहा क्योंकि स्थितियां और जीने का ढंग बदल गया है। एक अलमस्त होकर घूमना अब नहीं रहा। घर की चारदीवारी में कभी-कभी घुटन होने लगती है। बाहर निकलने पर एक अनजाना-सा डर घेर लेता है।
मैंने इसका एक हल ढूंढ़ा और सच में मैं इससे बहुत अधिक सुकून और खुशी महसूस कर रही हूं। मैंने अपने अनुभव से पाया है कि जब भी हम परेशान होते हैं, हमें प्रकृति के पास जाकर अच्छा लगता है क्योंकि प्रकृति में, फूलों-पत्तियों में जीवन लगता है। जीने में एक विश्वास जागता है। इसी को देखकर हम अपने आप में विश्वास पाते हैं। हमें शक्ति मिलती है आगे बढ़ने की, समस्याओं से जूझने की।
मैंने कार में चाय बना कर रख ली और साथ में कुछ खाने को बिस्किट लिये और फिर कार एक पार्क के सामने खड़ी कर दी। कार में संगीत को सुनना आरंभ किया और चाय की चुस्कियां लीं… सच में बाहर कुदरत को देखते हुए चाय पीना अपने आप में एक अनोखा सुखद अनुभव था, बिल्कुल नायाब। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो किसी रेस्तरां में बैठी हूं जो सभी तरह से हरियाली से घिरा हुआ है। चाय की सिप के साथ मानो एक अनूठी शक्ति और सुकून मेरे अंदर भर रह था।
मुझे पहली बार लगा मैं कभी पहले क्यों नहीं आई और इस तरह का अनुभव किया। पूरे दिन की घुटना, तनाव और बोरियत कुछ पलों में पता नहीं कहां चली गई। हरे-भरे पेड़ों, फूलों को करीब से गहराई से देखा, पक्षियों की गतिविधियों को देखा जो एक डाल से दूसरे डाल पर उड़ रहे थे। इन चंद लमहों ने जिंदगी में एक विश्वास भर दिया। कुछ समय के लिए ऐसा महसूस हुआ मानो कोई महामारी है ही नहीं, सब कुछ सामान्य है। बहुत गहरे तक अनुभव हुआ कि हम भौतिक संसाधनों से ही खुश और संतुष्ट नहीं हो सकते। खुश रहने के लिए कुदरती चीजों और उसका साथ होना कितना जरूरी है। इस सबको अनुभव करने के लिए भी कुदरत ने ही आभास दिलाया है। शायद हम कभी भी अपने आपको इतना नहीं जान पाते कि हम विपरीत परिस्थितियों में अपने आप को किस तरह से व्यवस्थित कर सकते हैं।
सचमुच! हमें हार नहीं माननी चाहिए। अपने ऊपर तनाव को नहीं ओढ़ना चाहिए बल्कि सारी परतों को हटाकर समस्याओं को कैसे हल करना है, यह सोचना चाहिए। रास्ते तो बहुत मिल जाते हैं, अगर हमारे कदम तैयार हो आगे बढ़ने के लिए। आओ! हम सब इस विपरीत स्थिति में एक राह ढूंढ़े… इस महामारी में कुछ सार्थक पहल करें, तनाव से दूर रहकर कुछ पल कुदरत के साथ बिताएं।
कुदरत… सुखद अनुभव
Alka
Positivity का होना बहुत ज़रूरी है । Quality of life maintain करने के लिए यह ज़रूरी है तो आजकल महामारी के दिनों में तो और भी आवश्यक। एकदम ठीक कहा आपने ।छोटी छोटी बातों से ही हम अपना enthusiasm बरक़रार रख सकते हैं ।
पीछे मेरी बिटिया से बात हो रही थी । उसने पहली बार अपने twins के लिए घर के अंदर ही swimming pool set किया । ब्च्चों ने तो किया ही , बढ़े भी उन्हें देख हंस रहे थे । बेटी ने झट से सबके लिए चाय और पकौड़े बनवा दिया । पूरे परिवार की घर बैठे पिकनिक हो गई ।