Lockdown – आत्ममंथन 13
आजकल जिंदगी कितनी अजीब ढंग से चल रही है। परिस्थितियां बदल गई हैं। हमारा सोचने का, घूमने का, शॉपिंग करने का तरीका बदल गया है। कभी-कभी तो हम इन परिस्थितियों से तालमेल बिठा पा रहे हैं और कभी-कभी तनाव में आ जाते हैं। यह कुदरती भी है क्योंकि मन बहुत शक्तिशाली भी है और निर्बल भी हो जाता है। इन परिस्थितियों को हम जीत सकते हैं बस सकारात्मक होकर ही।
आज एक जानकार से बात हुई वह कितनी ही चीजों से परेशान हैं जैसे कि वह शॉपिंग नहीं कर पा रहे, कहीं घूमने नहीं जा पा रहे, अपने ब्रांड की चीजें नहीं खरीद पा रहे। उनको मैंने कितने ही उदाहरण दिये कि लोग तो सामान्य वस्तुएं भी कितनी मुश्किल से ले पा रहे हैं
लग्जरी चीजों की तो दूर की बात है। परंतु उन्हें बहुत सारी शिकायतें थीं और मन में एक अनिश्चितता भी कि महामारी से हमें कब निजात मिलेगी। कब इसकी दवाई आये और किस तरह हम पहले की तरह जीवन व्यतीत कर पायेंगे। उनसे बातें करते-करते मेरी आंखों के आगे तैर गये अन्य चेहरे जो सामान्य सुविधाओं से दूर हैं जो अपनी नौकरी को खो चुके हैं, बिजनेस बिल्कुल बंद हो चुका है। वे अनिश्चितता के भंवर में डूब रहे हैं यह सोचकर कि अब आगे क्या होगा।
बहुत स्वाभाविक है कि हम इस बदलते समय में डर कर तनाव में जी रहे हैं, परंतु हमें यह सोचना चाहिए कि अगर स्थितियां इससे बदतर हो जाये तो क्या? अगर ये वायरस हवा में भी उतना ही नुकसान पहुंचाता तो हम कैसे जी पाते, शायद सबका बचना असंभव ही हो जाता। हम घर से कुछ कदम तक कुछ लमहों के लिए भी नहीं निकल पाते या वायरस और भयानक हो जाता। एक साथ सारे लोगों पर घातक होता तो हम क्या कर पाते? अभी तो गनीमत है कि कुछ सुरक्षा के नियमों के साथ हम अपने आप को सुरक्षित कर पा रहे हैं शायद यह कुदरत ने हमें फिर भी बचने का एक मौका दिया है कि कम से कम हम सावधानी के साथ अपने आप को बचा सकते हैं।
हम हमेशा अपनी जिंदगी में पूर्णता को देखना चाहते हैं। यह कभी नहीं सोचते कि हमारे पास क्या है। यही सोचते हैं कि हमारे पास वह सब कुछ नहीं है जो औरों के पास है। आधा भरा हुआ गिलास भी तो भरा हुआ ही माना जायेगा। लेकिन जो भाग खाली होता है हम उसी को देखते हैं। उस भरे हुए आधे गिलास को भी नजरअंदाज कर देते हैं। यह महामारी भी तो यही सिखा रही है कि हमारे पास बहुत कुछ है चाहे हम कितना खो भी रहे हैं या खो चुके हैं। शायद इतना समय हमें कभी न मिलता जितना हम आजकल समय का आनंद ले पा रहे हैं। कितने छूटे हुए शौक हम पूरा कर रहे हैं। कितने लोगों से हमारा संवाद हो रहा है, जिनसे पहले कभी नहीं हो पाता था। कितने अनुभवा साझा कर रहे हैं, क्या ये सम्भव था आम दिनों में? कभी नहीं। हर व्यक्ति अपनी ही दौड़ में भागता जा रहा था बहुत तेज। पर अब वह रुक कर यह सोचने को मजबूर हो गया है कि वह इतना तेज क्यों दौड़ रहा है।
ये जो स्थितियां घट रही हैं इसका असर बहुत वर्षों तक हमारे ज़हन में रहेगा। कुछ मीठी और कुछ कड़वी यादों के साथ।इस महामारी ने हमें खुद पर अनुशासन करना भी सिखा दिया है। अपने आपको सब लोग नियमित तरह से चला रहे हैं। जैसे अब लोग गाड़ी में फोन कम सुनने लगे हैं। अपनी सेहत के लिए योग कर रहे हैं। जिंदगी के प्रति नजरिया बदलने लगा है। मैंने बहुत लोगों को यह कहते हुए भी सुना है कि इतने पैसों का क्या फायदा हम तो घर में बंद होकर रह गये हैं। सबसे बड़ी और बहुत महत्वपूर्ण बात कि अब यह सोचने लगे हैं कि जैसे ही यह महामारी हटेगी तो हम जीवन को अच्छे से जीयेंगे। सबसे मिलेंगे और कुछ भी सकारात्मक काम करेंगे। कुछ लोगों का यह कहना कि वे बहुत दिन तक शहर से दूर घूमने चले जायेंगे। प्रकृति के साथ कुछ दिन बितायेंगे।
सच में यह महामारी बहुत सारे नये आयाम लेकर आई है। अच्छे और बुरे दोनों ही। ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि उन कड़वी यादों से कड़वे अनुभवों को भुला दें और जो भी अच्छी चीजें हुई हैं उनसे बहुत कुछ सीख लेकर सकारात्मक रूप से जिंदगी को जीएं।
अनुशासन… सकारात्मकता सुरक्षित
Neeru
Absolutely Right…….To maintain quality of life positive thinking is more important.
Alka
You said it right. There are many a positive effects of this period but at the same time there is a fear, an apprehension always at the back of the mind. And obviously a changed lifestyle and being unable to meet people at times is bugging.
Reena Madaan
मन के भावो एव परिस्थितियों की सुदर एव सत्य अभिव्यक्ति।