Lockdown – आत्ममंथन 5
जब भी कभी हम ज़िंदगी में बहुत तेज गति से चल रहे होते हैं और अचानक सामने कोई बाधा आ जाती है तो हम संभल नहीं पाते और बुरी तरह से गिर जाते हैं। अगर हम सहज गति से चलते हैं और किसी मुश्किल से गुजरते हैं तो संभल जाते हैं। बहुत बुरी तरह से नहीं गिरते।
हम सबके साथ भी ऐसा ही हुआ है। हम सब तेज गति से ज़िंदगी में दौड़ रहे थे, एक-दूसरे से आगे निकलने की अंधी दौड़ में शामिल… महामारी के रूप में एक बाधा हमारे सामने आई और हम संभल नहीं पाये। सच में इससे एक सबक लेने की जरूरत है कि कुदरत के साथ सहज भाव से चलना चाहिए।
जैसे सर्दी के बाद गर्मी आती है और फिर बरसात, ऐसा नहीं है कि एक मौसम आना भूल जाये और दूसरा आ जाये। एक प्रक्रिया है प्रकृति में। हमें भी इसी प्रकार का अनुसरण करना चाहिए।
हम कितना संवादहीन हो गये हैं कि किसी भी व्यक्ति के पास किसी दूसरे के लिए समय नहीं है, बनावटी समय के साथ तालमेल बिठाने के लिए हम बड़े-बड़े मॉल में जाने लगे हैं। घर में बैठना और कभी किसी अपने के साथ चाय पीना हम भूल गये हैं। घर में बैठकर हम एक-दूसरे के साथ जितना समय व्यतीत कर सकते हैं, कितना कुछ साझा करते हैं। कितने तनाव से हम बाहर आ जाते हैं और सुकून मिलता है, कितनी आत्मीयता मिलती है।
हमें हमेशा यह महसूस होता है कि हम अपनी परेशानियों और उलझनों में अकेले नहीं हैं, कोई है जो हमारे अहसास में हमारे साथ है। यही सोच, ख्याल एक अनजानी खुशी सुकून का सबब बन जाता है।
इस महामारी से हम सबकी आर्थिक स्थिति भी बहुत प्रभावित हुई है। ज़िंदगी के सारे समीकरण बदल गये हैं। शायद कुदरत हमें अपने आप पर संयम करना सीखा रही है ताकि हम अपने खर्चे और आय में तालमेल कर सकें। कुछ धन अपने लिये इस तरह की मुश्किल हालात के लिए रख सकें। सीखने-करने को मिल रहा है ऐसे काम जो नहीं किये वह मैं अब कर रही हूं। मैंने यह देखा कि हमारे अंदर कितनी क्षमता होती है। इन हालात में माली नहीं आ रहा है और पहले यह सोचते थे कि अगर माली छुट्टी पर चला गया तो क्या होगा?
लेकिन अब सब कुछ करने में बहुत अच्छा लग रहा है। लॉन को साफ करने में, फूलों को देखने में समय कैसे निकलता है। प्रकृति के साथ मन घुल-मिल जाता है। समय की परिधि से मन कहीं दूर चला जाता है। जहां आप बस सृजन के अहसास में डूब जाते हैं और सभी तरह के नकारात्मक विचार मानों मीलों-मील दूर चले जाते हैं।
हमें सच में अब अपना नजरिया बदलना चाहिए। अपने खोल से बाहर निकलना चाहिए। कितना पैसा कमा लेंगे? एक घर, दो घर… एक कार… दो कार कितना कुछ! इसकी तो कोई सीमा ही नहीं है। हमें ही तय करना चाहिए कि बस अब और नहीं… इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। नहीं तो बहुत ज्यादा एकत्रित करने के चक्रव्यूह में हम उलझते जायेंगे। एक घना और बहुत बड़ा जाल… और इसी में कैद होकर रह जायेंगे।
जरूरत है इसी जाल से बाहर निकलने की, खुद को निश्छलता और संयम से जीने की
… कुदरत… निश्छलता… संयम…!
डॉ. पान सिंह
सामयिक समस्या के संबंध में आपकी सोच आशा की ओर ले जाने वाली है। इस भयानक और भयावह समय में समय का प्रयोग किस तरह करना है, बताने का प्रयास किया गया है। साथ ही मेंअपने रिश्तों को सहेजने की बात बड़े सलीके से कही गई है। इस नई सोच और सुन्दर सृजन हेतु बधाई आपको।
सीमा गुप्ता
आत्म मंथन नहीं करने के परिणामस्वरूप ही नकारात्मक, उद्वेलित चित्त, अहंकार जैसे विकार हावी हो जाते हैं…… सुंदर सृजन
Alka
Beautiful analysis of life and times. You are right, the communication bridges are braking down. Otherwise gup shup over a cup of tea or coffee makes the relationship so strong and creates many a memory, many a story to tell and retell.
Rajni Pathak
Very true
This is the real picture of human.
Good lesson given by nature.