Lockdown – आत्ममंथन 9
नया वर्ष 2020 के कुछ महीनों बाद ही सारी स्थितियां बदलने लगीं। सभी कहने लगे कि यह साल बहुत बुरे ख्वाब लेकर आया है। लेकिन क्या दिन, महीना या किसी वर्ष का इसमें कोई दोष होता है। स्थितियां बिगड़ने पर हम अपने मन में धारणा बना लेते हैं, अमुक दिन अच्छा नहीं है या समय अच्छा नहीं था। यह सब कुदरत की एक प्रक्रिया है, जैसे हमारे मन के अंदर असंख्य विचार पनपते रहते हैं, समय-समय पर अनेक विचार बदलते रहते हैं परंतु इनका कोई इतिहास नहीं बनता क्योंकि ये मात्र हमारे से ही संबंधित होते हैं। लेकिन ऐसी महामारी या घटनाएं, जो हम सबके साथ घटित होती हैं, उससे सभी प्रभावित होते हैं।
ऐसे में हम मन के अनुसार काफी हद तक परिस्थितियों को बदल लेते हैं या उन पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सब कुछ हमारी इच्छानुसार हो, ऐसा भी नहीं है। जब हमारी इच्छानुसार नहीं होता, उस समय हम तनाव में आ जाते हैं, सोचते हैं कि हमने जैसा सोचा वैसा क्यों नहीं हो रहा? क्या यह गणित है जो हम कर रहे हैं, और इसका उत्तर एक प्रक्रिया से ही ठीक आयेगा।
जिंदगी एक गणित नहीं है। यह इतिहास की तरह है जो बदलता रहता है और वर्तमान में भी बदलता रहेगा। कई कार्य हमारे या कुदरत की प्रक्रिया, उसके दोहन फिर परिणाम थे या हैं और ये सब हमारे जीवन में घटित होते रहते हैं।
हम चाहे किसी व्यवसाय में हों, नौकरी करते हों या अपना कोई कार्य कर रहे हों। इन सबमें कम-ज्यादा बदलाव होना, स्वाभाविक है। परंतु जब कुछ बदलाव होता है, तब उस समय हम इससे अपना तालमेल नहीं बिठा पाते और तनाव में आ जाते हैं।
आजकल की स्थितियां तो बहुत ही भिन्न हैं क्योंकि एक बहुत बड़ा बदलाव हमारे जीने में आया है। आर्थिक परिस्थितियां बहुत प्रभावित हुई हैं। किसी को भी दोषारोपण करना बेमानी है। अपने लाभ-हानि को दरकिनार करके मात्र कम से कम सुविधाओं में रहने की आदत डालनी होगी। मन को हर परिस्थिति के लिए तैयार करना होगा, समझाना होगा, खुद की क्षमता पर विश्वास करना होगा।
आज जैसी परिस्थिति में हम बहुत ही सादे तरीके से खाना-पीना, रहना कर सकते हैं ताकि हम अपने व्यवसाय, नौकरी में आये बदलाव या बहुत कम आर्थिकी से निराश न हों। कुछ चीजों को छोड़ दें तो बहुत कम पैसों में हम जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। अगर महंगे ब्रांड की चीजें, कीमती कपड़े और कीमती खाने की चीजों का मोह त्याग दें।
एक बात इन सबके बीच बहुत अच्छी लगती है कि हम घर पर सुरक्षित तो हैं। घर में परिवार के साथ एकसाथ खाना खा रहे हैं, विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। लेकिन उनका क्या जो जरूरत की सुविधाओं से भी वंचित है। एक समय के खाने के लिए जिन्हें जंग लड़नी पड़ रही है। डरते हुए, वे रेहड़ी पर फल और सब्जियां बेच रहे हैं। लेकिन डर से ज्यादा परेशान भूख करती है। सचमुच, ऐसे लोगों के लिए बहुत दर्द महसूस होता है। इन चीजों के बिना वे अपना जीवन कैसे चला रहे हैं। तब हम भूल जाते हैं इन सबके दुख देखकर कि हमारी परेशानियों तो बहुत छोटी हैं।
एक परिचित ने अपने अनुभव साझा किये कि उनको इस बार बहुत नुकसान हो रहा है। इस बार उन्हें बहुत ज्यादा लाभ नहीं होगा। वे इसी बात से परेशान हैं। मुझे टाटा ग्रुप के पूर्व अध्यक्ष श्री रतन टाटा जी का वह कथन याद आया, जिसमें उन्होंने कहा कि ये साल नुकसान, फायदे का नहीं है, बस हम अपने आपको सुरक्षित कर सकें, बहुत बड़ी बात है।
अपनी छोटी-बड़ी उलझनों, तनावों को मैं भूल जाती हूं जब यह देखती हूं तो सब कुछ बेमानी-सा लगता है कि कुछ लोगों के पास न घर है, न खाने को और ऊपर से बीमारी का डर। लेकिन फिर भी ज़िद है जीने की, और जी रहे हैं। कभी-कभी सकुचाते हुए मांग लेते हैं और उम्मीद से कुछ खाने का सामान पाकर चुपचाप आंखों से धन्यवाद कह देते हैं। फिर एक प्रश्न सबके लिए कि क्यों हम निराश, उदास, हताश या तनाव में हैं। सब कुछ होते हुए भी सीमा में बंधकर, क्यों नहीं हम बेहतर ढंग से रह पाते, क्यों अथाह पाने की इच्छा है, क्यों… क्यों…?
तनाव… संतुष्टि… जीवन…!
Neeru
Satisfaction is more important
Rashmi Kharbanda
आप का लेख पढ़ कर पूरा lockdown का समय आंखों के सामने आ गया ।
आपका मन बहुत कोमल है तभी आप सबके दर्द को महसूस कर पा रही है ।
Alka
We have very few needs. This is what we have learnt during this period. Now is the time to give up the tendency to hoard. We should simplify life and instead of spending so much on our clothes and accessories etc we should start helping the needy specially help the children who are studying. One Saree less means sponsoring a child’s tuition for a session